Tuesday, July 22, 2008

फिर टाटा-अंबानी की सरकार क्यों न बने?

सरकार के विश्वास मत जीतने के बाद ऑफिस से घर पहुंच कर सोने की तैयारी कर रहा था, तभी मेरे एक दोस्त का फोन आया। विचारधारा के स्तर पर हम दोनों विपरीत धुरी पर हैं। फिर भी दोनों ही इस बात पर सहमत थे कि सरकार जीत गई लेकिन इस सब में कहीं न कहीं संसद, लोकतंत्र और जनता के विश्वास की हार हुई है। उससे बात होने के बाद मैं काफी देर तक सोचता रहा कि अभी तो विश्वास मत जीतने के लिए यह सब हुआ है, कहीं भविष्य में सरकारें इसी तरह तो नहीं बनेंगी!

पता नहीं मैं क्यों इतना आहत था कि देर रात तक इस पर सोचता रहा। जबकि भारतीय लोकतंत्र के लिए यह कोई नई बात तो थी ही नहीं। केंद्र में पर्दे के पीछे से और राज्यों में खुल्लमखुल्ला यह खेल तो वर्षों से खेला जाता रहा है। बस, इस बार तो खेल ने राष्ट्रीय स्तर पर अपना असली चेहरा भर दिखाया है। इस बारे में हमारे सीनियर दिलीप मंडल की राय है कि क्यों न भारत में भी 'दलाल संस्कृति' को कानूनी जामा पहना दिया जाए। जब उन्होंने यह बात कही थी तब मैं उनसे पूरी तरह सहमत नहीं था लेकिन अब मुझे भी लगता है कि कथित रूप से मू्ल्यों पर आधारित लोकतंत्र को अगर इसी रास्ते पर जाना है, तो इसमें बुराई ही क्या है।

मैं तो अब दिलीप जी से भी आगे की सोचने लगा हूं। मुझे लगता है कि आईपीएल के लिए जिस तरह से कॉरपोरेट घरानों ने क्रिकेटरों की बोली लगाई थी वैसी ही कुछ व्यवस्था राजनीति में भी होनी चाहिए। वैसे भी हमारे 'माननीय' बिकाऊ ही हैं तो ऑफिसयली बिकें। इससे दो फायदे होंगे एक तो उन्हें कीमत अच्छी मिलेगी और जनता को भी पता रहेगा कि फलां सांसद का मार्केट रेट क्या है। इस तरह बीजेपी या कांग्रेस के बजाय देश की जनता को टाटा या अंबानी के सरकार राज में रहने का मौका मिल जाएगा। ज़ाहिर है जब टाटा और अंबानी इतना इन्वेस्ट करके सरकार बनाएंगे तो रिजल्ट भी चाहेंगे और फिर एक बार जीतने के बाद संसद व जनता को चेहरा न दिखाने वाले सांसदों की छुट्टी भी करेंगे। जैसा कि विजय माल्य अपनी आईपीएल की आधी टीम बदलने के मूड में हैं।

मैं जानता हूं कि यह विचार थोड़ा नहीं, बहुत अतिवादी है। लेकिन ये सबकुछ अगर हो ही रहा है तो क्यों न सबके सामने हो। फिर इससे यह भी होगा कि सांसद की जितनी बोली लगाई जाएगी, उसका एक हिस्सा इनकम टैक्स के रूप में देश के खजाने में भी जाएगा। अभी तो सांसद अपनी कीमत का सारा माल पचा जाते हैं और देश पर ब्लैक मनी का बोझ कुछ और बढ़ जाता है। सच मानिए, जब भारतीय प्रजातंत्र में आईपीएल की तर्ज पर सांसदों की बोली लगेगी तो खेल मंगलवार से भी ज़्यादा मज़ेदार होगा और उसका टीआरपी आईपीएल के फाइनल से भी अधिक होगा।

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