
लुधियाना में हुई हिंसा का यह फोटो आज एक अखबार में छपा है। फोटो यह बताने के लिए काफी है कि 'दिल देने और दिल लेने में नंबर वन' पंजाबियों के दिलों में प्रवासी मजदूर समुदाय के प्रति सिर्फ २४ घंटे के भीतर पुलिस-प्रशासन ने कितनी नफरत भर दी और उन्हें एक-दूसरे की जान का दुश्मन बना दिया।
मजदूर वहां किस तरह से लूट का शिकार हो रहे हैं, इसे स्थानीय अखबार में छपी पटना के मजदूर राम कुमार की कहानी के जरिए भी समझा जा सकता है। काम की तलाश में पटना से लुधियाना आया था। उसने तीन साल लुधियाना की एक फैक्टरी में नौकरी की और इस दौरान वह चार बार लुटा। तीन बार वह शिकायत करने की हिम्मत नहीं कर सका। दो-तीन महीनों में वह जितना कमाता था, किसी न किसी रात लुटेरे घात लगाकर उससे लूट लेते। राम कुमार ने बेटी की शादी के लिए कुछ हज़ार रुपये जोड़े थे, वह भी लुटेरों ने छीन लिए। निराश होकर राम कुमार ने लुधियाना से मुंह मोड़ लिया और यहां दोबारा न आने की कसम खाकर पटना लौट गया कि बेटी की शादी हो या न हो, वह पटना में ही काम करेगा।
राम कुमार जैसे कई मजदूर जो रोजी-रोटी और परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए बिहार से पंजाब तक का सफर तय कर रहे थे, अब उनके कदम ठिठकने लगे हैं। कई तो पंजाब से अपने घर आने के बाद वहां लौटने की भी नहीं सोच रहे हैं। उनकी मनोदशा को जताने के लिए दुष्यंत कुमार की ये पक्तियां काफी हैं...
कहां चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
यहां दरख़्तों के साये में धूप लगती है
चलो यहां से चले और उम्र भर के लिए
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