Friday, September 12, 2008

अंग्रेजी के मारे बाप बेचारे

मेरे कुछ दोस्तों की शादी हो गई है और एक-दो दोस्त के बच्चे स्कूल जाने लायक भी हो गए हैं। मेरे दो दोस्तों ने अपने-अपने बेटे के लिए कुछ स्कूलों का फॉर्म भरा है। एक दोस्त, जो पत्रकार हैं, की अंग्रेजी थोड़ी अच्छी है लेकिन दूसरे की अंग्रेजी अच्छी नहीं है (ऐसा मेरा मानना है)।


गलाकाट प्रतिद्वंद्विता के इस दौर की त्रासदी यह है कि अगर आप साधन संपन्न नहीं हैं तो अपने बच्चों को किसी लायक बनाने की सोच रखने के लिए भी शर्मिंदा होना पड़ सकता है। पर समस्या यह है कि सिर्फ आपके साधन-संपन्न होने से ही समस्या नहीं सुलझ जाती। स्कूल हर स्तर पर यह जांच लेना चाहता है कि आप में कहीं से कुछ भी भदेसपन (यहां मौलिकता समझें) न बचा हो।


इसलिए अंग्रेजी माध्यम के सारे नामी स्कूल अदालतों के आदेशों को ताक पर रखकर नर्सरी में दाखिला चाहने वाले बच्चों के साथ-साथ मां-बाप का भी इंटरव्यू ले रहे हैं। मां-बापों को तो लिखित परीक्षा भी देनी पड़ रही है। बकायदा प्रश्नपत्र होता है और 45 मिनट से लेकर एक घंटे के भीतर सात से दस सवालों के जवाब देने होते हैं। बच्चा और मां-बाप की परीक्षा के आधार पर दाखिले के लिए सफल छात्रों की सूची तैयार की जाती है। अभी तक जिन स्कूलों के रिजल्ट निकले हैं उनमें जिस दोस्त की अंग्रेजी थोड़ी अच्छी है उसके बेटे का नाम तो है लेकिन दूसरे के बेटे का नाम गायब है।

मैं यहां हिंदी बनाम अंग्रेजी के बहस में नहीं पड़ना चाहता, इस पर फिर कभी बात करूंगा। लेकिन एक सवाल जरूर परेशान किए हुए है। क्या किसी के बच्चे को सिर्फ इसलिए मनचाहे स्कूल में दाखिला नहीं मिल सकता क्योंकि उसकी अंग्रेजी दूसरे प्रतिद्वंद्वी बापों से थोड़ी कमतर है? क्या यह प्रतिभा के हनन का मामला नहीं है? इसका जो दूसरा पहलू है वह तो इससे भी अधिक स्याह है। अगर किसी बाप की खराब अंग्रेजी की वजह से उसके बच्चे को मनचाहे स्कूल में दाखिला नहीं मिलता है तो क्या वह अपराधबोध से जीते जी नहीं मर जाएगा?