बहुत कुछ खोया है मैंने
गांव से दिल्ली के सफर में
यह एहसास दिलाया मुझे
आज बचपन के एक दोस्त ने
अब मैं जब खुद को तलाशता हूं
आईना में अपना चेहरा
पहले से ज्यादा बेरहम पाता हूं।
(कुछ दिनों पहले ऑफिस में बातचीत के दौरान विवेक ने मुझे कविता लिखने के लिए प्रेरित किया था। कविता तो नहीं लिख पाया, अब यह तुकबंदी जैसी भी बन पड़ी है विवेक को समर्पित है।)