Friday, June 12, 2009

अब अमेरिका देगा हमें सहिष्णु होने का प्रमाण पत्र

धार्मिक आजादी के मामले में दुनिया भर के देशों में हालात का आकलन करने के लिए बनाए गए अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) के जून-जुलाई में भारत के प्रस्तावित भारत दौरे को लेकर हिंदूवादी संगठनों की भौंहें तन गई हैं। दूसरी तरफ ईसाई संगठनों ने इसका स्वागत किया है। इन संगठनों का मानना है कि यह भारत की धार्मिक सार्वभौमिकता पर हमला है। आयोग की टीम के दौरे पर आधारित रिपोर्ट के आधार पर ही अमेरिका यह तय करेगा कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता के क्या हालात हैं।
इससे पहले केंद्र की किसी भी सरकार ने इस आयोग को भारत आने की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन यूपीए की सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के अंतिम दिनों में आयोग को भारत आने की इजाजत दे दी। कमिश्न के सदस्य जून या जुलाई में भारत के दौरे पर आ सकते हैं। गौरतलब है कि अमेरिका के इस आयोग के कमिश्ननरों की नियुक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति करते हैं और दुनिया के देशों में मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता पर बनने वाली अमेरिकी नीति में इस आयोग की रिपोर्ट खासी मायने रखती है। यह आयोग हर साल रिपोर्ट जारी करता है और अमेरिकी विदेश विभाग इस आधार पर कार्रवाई करता है। इसी कमिशन की रिपोर्ट के आधार गुजरात के मुख्यमंत्री को 2005 में अमेरिका का वीज़ा नहीं मिला था।
2009 के लिए 1 मई को जारी रिपोर्ट में आयोग ने दुनिया के 13 देशों-जिनमें चीन, नॉर्थ कोरिया और पाकिस्तान शामिल हैं को कंट्रीज ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न (सीपीसी)की कैटगरी में रखा है। कमिशन के संविधान के मुताबिक सीपीसी की श्रेणी में उन देशों को रखा जाता है जहां किसी खास धर्म या मत के अनुयायियों (मानने वालों) को हिंसा का शिकार बनाया गया हो । पिछले 10 सालों में कमिशन की यह सबसे विस्तृत रिपोर्ट है।
विश्च हिंदू परिषद (वीएचपी)के केंद्रीय महामंत्री और मीडिया प्रभारी राजेंद्र पंकज ने कहा कि यूपीए सरकार द्वारा अमेरिकी कमिश्न को भारत आने का न्योता देना हमारी धार्मिक सार्वभौमिकता पर हमला है। उन्होंने केंद्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी कमिशन को गुजरात, उड़ीसा और कर्नाटक में ही खास तौर पर क्या भेजा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह कमिशन जहां भी जाएगा उसका विरोध साइमन कमिशन की तर्ज पर किया जाएगा।
गौरतलब है कि इन तीनों राज्यों में संघ परिवार का मजबूत आधार है और उड़ीसा व कर्नाटक में हाल के दिनों धार्मिक हिंसाएं भी हुई हैं। सूत्रों के मुतिबाक इस मसले पर एक-दो दिन में वीएचपी के मुखिया अशोक सिंघल प्रेस कॉन्फ्रेस करके संगठन का रुख साफ करेंगे। अभी वह कोयम्बटूर में अपना इलाज करेंगे।
कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने भी धार्मिक मामलों पर अमेरिकी कमिशन के आधिकारिक दौरे का विरोध किया है। पीटीआई के मुताबिक शंकराचार्य ने शुक्रवार को मुंबई में कहा, 'यह हमारे आंतरिक धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है। उन्होंने कहा कि इस कमिशन को भारत में आने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। हम अपने आंतरिक मामले में बाहरी हस्तक्षेप मंजूर नहीं कर सकते।'
यह खबर मैंने अपनी साइट नवभारत टाइम्स के लिए लिखी थी।

Thursday, June 11, 2009

VHP खोलेगी प्रॉडक्शन हाउस, वेब पोर्टल की भी तैयारी

विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की हमेशा से शिकायत रही है कि हिंदू हित के मुद्दे अथवा उससे जुड़े घटनाक्रम पर मीडिया में संघ परिवार का पक्ष नहीं दिखाया जाता है। मीडिया द्वारा लगातार 'उपेक्षा' से आहत वीएचपी ने अब अपना पक्ष रखने के लिए प्रॉडक्शन हाउस खोलने का फैसला किया है। योजना है कि प्रॉडक्शन हाउस प्रोग्राम बनाकर चैनलों पर स्लॉट लेकर दिखाएगा। कुछ चैनलों से इसके लिए बातचीत भी चल रही है। अगर इसके अनुभव अच्छे रहे तो वीएचपी बाद में अपना चैनल लाने पर भी विचार कर सकती है। इसके अलावा वीएचपी एक पोर्टल भी लाने जा रही है, जिसमें 'हिंदू सरोकारों' से जुड़े सारे मुद्दे को तरजीह दी जाएगी।
वीएचपी के केंद्रीय महामंत्री और मीडिया प्रभारी राजेंद्र पंकज का इस बारे में कहना है, 'आज देश में हिंदू अवधारणा और आस्था निशाने पर है। हम हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं और ऐसी परिस्थिति में हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकते। इसलिए समाचार और विचार को सही तरीके प्रस्तुत करने व भारतीय विचारों को पोषित करने के लिए हम छोटी सी पहल कर रहे हैं।' उन्होंने कहा कि, 'आज देश में सेवा कार्यों का जिक्र आने पर केवल चर्च की चर्चा होती है जबकि संघ परिवार एक लाख से अधिक प्रकल्प चला रहा है। मीडिया संघ परिवार की नकारात्मक छवि बनाने में ही रुचि रखता है, जबकि हम कई सकारात्मक काम कर रहे हैं। प्रोग्रामिंग के जरिए इन्हीं सकारात्मक कार्यों को उभारा जाएगा।'
वीचएपी की इस मुहिम को परवान चढ़ाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि के कई पत्रकार भी मदद कर रहे हैं। इसके साथ ही देश का एक अग्रणी मीडिया हाउस स्टूडियो वगैरह के निर्माण में मदद कर रहा है। इसी मीडिया हाउस के टेक्निकल हेड की देख-रेख में वीएचपी मुख्यालय के एक हिस्से को प्रॉडक्शन हाउस का रूप देने का काम चल रहा है। करीब आधा से अधिक काम पूरा भी हो चुका है। उम्मीद है कि दो महीने में स्टूडियो और पोस्ट प्रॉडक्शन के लिए एडिटिंग बे आदि बनकर तैयार हो जाएंगे।
वीएचपी से जूड़े सूत्र का कहना है कि अगस्त के अंत निर्माण कार्य पूरा होने के बाद प्रोग्राम तैयार करने का काम शुरू होगा। प्रोग्रामिंग दो स्तर की होगी। संघ परिवार और वीएचपी के सामाजिक क्षेत्र में काम चल रहे हैं। वीएचपी की योजना है कि संघ परिवार के सामाजिक कार्यों पर वह डॉक्यूमेंट्री बनाकर और धार्मिक चैनलों पर स्लॉट खरीदकर इसे दिखाया जाए। दूसरी योजना सम-सामयिक विषयों पर डॉक्यूमेंट्री और चैट शो जैसे प्रोग्राम तैयार करने की भी है। कोशिश यह रहेगी कि इन प्रोग्रामों का प्रसारण न्यूज चैनलों पर हो सके।
यह खबर मैंने अपनी साइट नवभारतटाइम्स.कॉम के लिए लिखी है, वहीं से साभार लिया है।

Monday, June 8, 2009

नहीं रहे हबीब तनवीर

मशहूर रंगकर्मी हबीब तनवीर का भोपाल में सोमवार को निधन हो गया है। वह 85 वर्ष के थे। थियेटर की दुनिया पर अमिट छाप छोड़ने वाले हबीब साहब कई हफ्तों से बीमार थे। उन्होंने जब आखिरी सांस ली तब उनकी बेटी नगीन उनके पास मौजूद थीं। पहले उन्हें सांस लेने में कुछ तकलीफ हो रही थी और इसके इलाज के लिए उन्हें अस्पताल ले जाया गया था। बाद में उनकी हालत बिगड़ गई और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।
एक सितंबर 1923 को हबीब का जन्म रायपुर में हुआ था। उन्हें पद्मभूषण, पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनके प्रसिद्ध नाटक आगरा बाजार, मिट्टी की गाड़ी, चरनदास चोर और पोंगा पंडित हैं।
थियेटर का रिश्ता सभी कला माध्यमों के साथ है। यह तो सब जानते ही हैं पर इस बात को निभा नहीं पाते। हबीब साहब ने सहज रूप से न केवल इसको समझा बल्कि निभाया भी। नाटककार होने के साथ-साथ हबीब तनवीर निर्देशक, कवि और अभिनेता भी थे। उन्हें कविता लिखने का शौक था और 1945 में मुंबई पहुंचकर उन्होंने अपने शौक का भरपूर फायदा उठाया।
हबीब तनवीर ने ऑल इंडिया रेडियो, मुंबई के लिए काम भी किया और साथ ही हिंदी फिल्मों के लिए गाने भी लिखे। कुछ फिल्मों में उन्हें अभिनय का भी मौका मिला। इसी दौरान वह प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े और फिर इप्टा में भी शामिल हुए। बाद में हबीब दिल्ली आ गए और हिंदुस्तान थियेटर से जुड़े। 1954 में उन्होंने अपने मशहूर नाटक आगरा बाजार का मंचन किया।