मशहूर रंगकर्मी हबीब तनवीर का भोपाल में सोमवार को निधन हो गया है। वह 85 वर्ष के थे। थियेटर की दुनिया पर अमिट छाप छोड़ने वाले हबीब साहब कई हफ्तों से बीमार थे। उन्होंने जब आखिरी सांस ली तब उनकी बेटी नगीन उनके पास मौजूद थीं। पहले उन्हें सांस लेने में कुछ तकलीफ हो रही थी और इसके इलाज के लिए उन्हें अस्पताल ले जाया गया था। बाद में उनकी हालत बिगड़ गई और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।
एक सितंबर 1923 को हबीब का जन्म रायपुर में हुआ था। उन्हें पद्मभूषण, पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनके प्रसिद्ध नाटक आगरा बाजार, मिट्टी की गाड़ी, चरनदास चोर और पोंगा पंडित हैं।
थियेटर का रिश्ता सभी कला माध्यमों के साथ है। यह तो सब जानते ही हैं पर इस बात को निभा नहीं पाते। हबीब साहब ने सहज रूप से न केवल इसको समझा बल्कि निभाया भी। नाटककार होने के साथ-साथ हबीब तनवीर निर्देशक, कवि और अभिनेता भी थे। उन्हें कविता लिखने का शौक था और 1945 में मुंबई पहुंचकर उन्होंने अपने शौक का भरपूर फायदा उठाया।
हबीब तनवीर ने ऑल इंडिया रेडियो, मुंबई के लिए काम भी किया और साथ ही हिंदी फिल्मों के लिए गाने भी लिखे। कुछ फिल्मों में उन्हें अभिनय का भी मौका मिला। इसी दौरान वह प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े और फिर इप्टा में भी शामिल हुए। बाद में हबीब दिल्ली आ गए और हिंदुस्तान थियेटर से जुड़े। 1954 में उन्होंने अपने मशहूर नाटक आगरा बाजार का मंचन किया।
एक सितंबर 1923 को हबीब का जन्म रायपुर में हुआ था। उन्हें पद्मभूषण, पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनके प्रसिद्ध नाटक आगरा बाजार, मिट्टी की गाड़ी, चरनदास चोर और पोंगा पंडित हैं।
थियेटर का रिश्ता सभी कला माध्यमों के साथ है। यह तो सब जानते ही हैं पर इस बात को निभा नहीं पाते। हबीब साहब ने सहज रूप से न केवल इसको समझा बल्कि निभाया भी। नाटककार होने के साथ-साथ हबीब तनवीर निर्देशक, कवि और अभिनेता भी थे। उन्हें कविता लिखने का शौक था और 1945 में मुंबई पहुंचकर उन्होंने अपने शौक का भरपूर फायदा उठाया।
हबीब तनवीर ने ऑल इंडिया रेडियो, मुंबई के लिए काम भी किया और साथ ही हिंदी फिल्मों के लिए गाने भी लिखे। कुछ फिल्मों में उन्हें अभिनय का भी मौका मिला। इसी दौरान वह प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े और फिर इप्टा में भी शामिल हुए। बाद में हबीब दिल्ली आ गए और हिंदुस्तान थियेटर से जुड़े। 1954 में उन्होंने अपने मशहूर नाटक आगरा बाजार का मंचन किया।
2 comments:
waakai dukh kee baat hai. magar ek baat hai, jha jee. apna photoo bada chhaant kar lagaaye hain aap kuchh smart sa lag raha hai.
अपनी धुन के पक्के इस सच्चे रंग कर्मी को भावः भीनी श्रधांजलि....
नीरज
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