Monday, July 6, 2009
अनैतिक सोच इतनी हावी क्यों है?
एक कॉन्डम का विज्ञापन इन दिनों जोर-शोर से टेलीविजन पर दिखाया जा रहा है, जिसमें दो अपरिचित पात्र (युवक और युवती) मिलते हैं और युवती तुरंत युवक को यौन संबंध बनाने का निमंत्रण दे देती है। यह समझा जा सकता है कि कॉन्डम के विज्ञापन को यौन संबंध के जरिए दिखाने पर उसकी अपील सशक्त होती होगी। लेकिन बार-बार मन में सवाल उठता है कि विज्ञापन में यह संबंध मियां-बीवी के बीच भी दिखाया जा सकता था।ऐसे कई और विज्ञापन हैं, जो 'अनैतिक' बनने, दिखने या सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। मुझे इसके पीछे अतृप्त इच्छा को भुनाने का गणित नजर आता है। दरअसल, संचार माध्यमों के गुरु अपने टारगेट (संभावित खरीदार) की कुंठा को भुनाना चाहते हैं। जाहिर आदमी के पास जो होता है, उसकी वह अनदेखी करता है और कभी ना पूरी होनेवाली कुंठा के पीछे परेशान रहता है।अनैतिक कर्म के इस संदर्भ को थोड़ा आगे बढ़ाते हैं और हाल में एलजीटीबी (गे, लेस्बियन, ट्रांससेक्सुअल और बाइसेक्सुअल) समुदाय के लिए आए फैसले से जोड़कर देखते हैं। बहुत सारे लोग कह रहे हैं कि सेक्स के मामले अलग तरह की अभिरुचि रखने वाले ये लोग अनैतिक हो सकते हैं, पर अपराधी नहीं हैं। मुझे यह मानने वालों से कोई परेशानी भी नहीं है लेकिन इन मुट्ठी भर 'अनैतिक' लोगों के लिए इतना हो-हल्ला क्यों? हाई कोर्ट के फैसले के बाद ऐसा लग रहा था जैसे ना जाने बतौर राष्ट्र हमने क्या हासिल कर लिया। ऐसा लग रहा था कि मीडिया कानूनी स्वीकार्यता के साथ-साथ उसी दिन इन लोगों को सामाजिक स्वीकार्यता भी दिला देगा। बार-बार मन में सवाल उठ रहा है कि आखिर अनैतिक सोच या दर्शन हमारे दिलो-दिमाग पर इतना हावी क्यों है।
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9 comments:
सीधे सीधे एड्स पर बात नही करते ती.वी. वाले यही व्यावसायिकता है
विज्ञापन तो बाजार आंकता है.
Eetna dhyan se to koi upbhokta ad dekhta hi nahin hoga. lekin baat me dum hai. aise vigyapan dekh kar shiney type situation me fasne ka dar rahta hai. Bahut anaitik vigyapan aanel lage hain
भाई जी, कान्डोम बेचना है तो बाजार वाले तरीका तो अपनायेंगे ही। आप किस जमाने में जी रहे हैं। बाजारवाद में नैतिकता की बात करने वाले बेवकूफ समझे जाते हैं।
खैर, बहुत दिनों से आपकी तलाश थी अचनाक मिल गये ब्लाग पर खुशी हुई। भई, कभी कभार तो मेरा हालचाल भी पूछ लीजिए।
आपका
एम अखलाक
कंडोम को अगर 'यौन सम्बन्ध' के जरिये नहीं दिखायेंगे तो क्या गुब्बारा फुला के दिखायेंगे.. यह बाजार है..
chinta vaazib hai........
achhi post !
अब तो प्यार शब्द को भी कंडोम से जोड़ा जा चुका है। मानों प्यार = कंडोम :-(
सहमत हूं आपसे।
समाज के नैतिक मूल्यों का इतनी तेजी से ह्रास का एक बड़ा कारण उपभोक्तावाद का दुष्प्रचार है | देखिये आम आदमी बुरा नहीं है यदि किसी आदमी को २४ X ७ बस गलत चीज दिखाते रहेंगे तो उसे तो यही लगेगा की यही ठीक है | आज की टीवी चैनल अपना ध्यान गाहे - बगाहे सेक्स पे केन्द्रित कर लिया है | सेक्स वैसे भी मनुष्य को बहुत आसानी से अकर्सित करती है |
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